08 शोधकार्य के लिए नारीवादी परिप्रेक्ष्य
Slide 1: 🎬 परिचय: रिसर्च में नारीवादी नजरिया 🚺🔬
उद्देश्य:
- यह सोच कैसे आई? 🤔
- कैसे इसने पुरानी रिसर्च को चैलेंज किया?
- कैसे समाजशास्त्र ने शुरुआत में जेंडर (लिंगिकता) को लगभग देखा ही नहीं? 🤦♀️
- नारीवादी सोच ने न सिर्फ इस कमी को पकड़ा, बल्कि रिसर्च के नए रास्ते भी खोले। 🛤️
- यह सोच खुद भी कैसे समय के साथ बदली है? ⏳
Slide 2: 🧐 प्रारंभिक समाजशास्त्र में लैंगिकता की स्थिति
- 20वीं सदी तक: लैंगिकता कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। 🤷♀️
- रिसर्च का स्वरूप: ज्यादातर प्रत्यक्षवादी (Positivist) थी।
- मतलब: समाज को एकदम वस्तुनिष्ठ होकर, साइंटिफिक तरीके से समझा जा सकता है। 🧪
- पुरुषों का दबदबा: रिसर्च पुरुष-केंद्रित थी। 👨🔬
- यह माना जाता था कि पुरुषों का अध्ययन कर लिया तो समाज का अध्ययन हो गया; महिलाएं तो उसमें शामिल हैं ही। 🤦♂️
- लैंगिकता को प्राकृतिक माना गया: जैसे इस पर सवाल ही न उठे, इसे दिया हुआ मान लिया गया। 🌳
Slide 3: 🗣️ नारीवादी चुनौती: वस्तुनिष्ठता पर सवाल
- नारीवादी विचारकों ने: इसी वस्तुनिष्ठता, इस "वैल्यू न्यूट्रैलिटी" पर सवाल उठाने शुरू किए। ❓
- तर्क: यह वस्तुनिष्ठता झूठी है; इसमें तो पुरुषों का ही नजरिया, उनका पूर्वाग्रह शामिल है। 😠
- उदाहरण:
- रूसो या कांट के विचार: महिलाओं को तर्क में कमजोर मानना। 🤦♀️
- कार्टेशियन द्वैतवाद: मन और तर्क को पुरुष से जोड़ना, और शरीर और भावना को स्त्री से। 🧠♂️ ❤️♀️
- रिसर्च पर असर:
- रिसर्च के सवाल भी वही बने जो पुरुषों को जरूरी लगे।
- विश्लेषण के तरीके भी उनके हिसाब से तय हुए।
- भावनाओं, निजी अनुभवों को ज्ञान नहीं माना गया। 💔
- सैंड्रा हार्डिंग और डोरोथी स्मिथ: औपचारिक ज्ञान को ही तरजीह मिली। 📜
- एक और बड़ी आलोचना: रिसर्चर और जिस पर रिसर्च हो रही है, उसके बीच के रिश्ते की।
- पारंपरिक रिसर्च में जिन लोगों पर स्टडी हो रही है, उन्हें एक ऑब्जेक्ट, एक वस्तु की तरह देखा जाता था। उनकी अपनी आवाज का महत्व नहीं था। रिसर्चर ही एक्सपर्ट था। 🔬👩🔬
- मारिया मीस: रिसर्च तो शोषितों के पक्ष में होनी चाहिए, उन्हें वस्तु नहीं समझना चाहिए। 💪
Slide 4: 💡 नारीवादी अनुभवजन्य दृष्टिकोण (Feminist Empiricism)
- कब आया: 60s-70s में। ⏳
- मकसद:
- मौजूदा साइंटिफिक तरीकों से ही यह दिखाएं कि महिलाएं भी पुरुषों जितनी काबिल हैं। 💪♀️ = 💪♂️
- उन्हें भी रिसर्च में शामिल करो। 🙋♀️
- आलोचना: यह तो बुनियादी पुरुषवादी ढांचे को जस का तस रख रहा है (सिस्टम को मत बदलो, बस उसमें महिलाओं को ले आओ)। 🏛️➕🚺
Slide 5: ✨ नारीवादी अनिवार्यता (Feminist Essentialism)
- जवाब में आया: नारीवादी अनिवार्यता।
- तर्क: अनुभववाद तो महिला-पुरुष के असली फर्क को मान ही नहीं रहा। 🙅♀️≠🙅♂️
- कैसा फर्क?
- महिलाएं मौलिक रूप से पुरुषों से अलग हैं।
- शायद देखभाल की प्रवृत्ति में, जुड़ाव महसूस करने में। ❤️🤝
- रिसर्च का फोकस: आदर्श पुरुष नहीं, आदर्श स्त्री होनी चाहिए। 👩🔬🎯
- दिक्कतें:
- सबसे बड़ी दिक्कत: यह अक्सर एक खास तरह की महिला (जैसे श्वेत, मध्यमवर्गीय महिला) के अनुभव को ही सबका अनुभव मान लेता था। 🌍 विविधता को नजरअंदाज कर दिया। 🤦♀️
Slide 6: 🗺️ मनोदृष्टि सिद्धांत (Standpoint Theory)
- बहुत महत्वपूर्ण मोड़! 🔄
- क्या कहता है:
- ज्ञान यूनिवर्सल नहीं है, बल्कि आपकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है। ज्ञान "सिचुएटेड" है। 📍
- मुख्य विचारक: नैंसी हार्टसॉक, डोरोथी स्मिथ, पैट्रिशिया हिल कॉलिन्स।
- तर्क: जो हाशिए पर हैं (जैसे महिलाएं, अश्वेत महिलाएं), उनका नजरिया दुनिया को ज्यादा गहराई से दिखाता है। ➡️🌍
- क्यों? क्योंकि वो सत्ता के बाहर से देख रहे हैं। वो उन चीजों को देख सकते हैं जो सत्ता में बैठे लोगों को नहीं दिखतीं। 👓
- ज्ञान की परिभाषा बदल रहा है! 🤯
- यह रिसर्चर और शोध विषय को बराबर मानता है, उनके अनुभवों को ज्ञान का स्रोत मानता है। 🤝
Slide 7: Postmodernism 🌀
- कब आया: 80 के दशक के बाद। ⏳
- मुख्य विचार:
- इसने तो और आगे जाकर हर तरह के यूनिवर्सल सच, ऑब्जेक्टिविटी, यहाँ तक कि "महिला" जैसी एक कैटेगरी पर ही सवाल उठा दिए। ❓❓❓
- कोई एक सच है ही नहीं! 🚫
- ज्ञान हमेशा पावर से जुड़ा होता है। 💪
- वो भाषा और विमर्श (डिस्कोर्स) से बनता है। 🗣️📜
- कोई एक सही नारीवादी नजरिया नहीं, कई नजरिए हैं। 🌈
- आलोचना:
- रमन ओग्लू: यह कभी-कभी भाषा पर इतना ज्यादा फोकस करता है कि जमीनी हकीकत (जैसे गरीबी, सामाजिक ढांचे) को नजरअंदाज कर देता है। 💸🌍
Slide 8: 🤝 निष्कर्ष: विविधता और साझा लक्ष्य
- नारीवादी शोध कार्य कोई एक अकेली सोच नहीं है। इसमें कई अलग-अलग, कभी-कभी टकराते हुए भी, दृष्टिकोण हैं। 🌈
- साझा लक्ष्य:
- जेंडर और पावर के रिश्तों को बेहतर समझना। ♀️♂️💪
- ज्ञान के पारंपरिक दावों को चुनौती देना। 📜
- यात्रा: अनुभववाद ➡️ अनिवार्यता ➡️ मनोदृष्टि सिद्धांत ➡️ उत्तराधुनिकतावाद तक। 🛤️
- इसने समाज विज्ञानों को बहुत गहराई से बदला है। 🔄🌍
Slide 9: 🤔 अंतिम सवाल
- अगर हम यह मानें कि ज्ञान हमेशा रिसर्चर की सामाजिक स्थिति से जुड़ा है, उसके पूर्वाग्रहों से जुड़ा है...
- ...तो फिर वो जो पारंपरिक वस्तुनिष्ठता (Objectivity) की बात होती है, उसका क्या मतलब रह जाता है? 🤷♀️
- क्या ज्ञान की प्रकृति ही बदल जाती है? 🤯
- वस्तुनिष्ठता का विचार खुद कितना वस्तुनिष्ठ है? 🤔