Limitations of Charwak Philosophy
कुछ बातें इनकी आलोचना (criticism) में हमेशा ध्यान रखनी हैं| इन लोगों ने एक तरफा तरीके से बातें कीं।
प्रत्यक्ष के beyond कुछ नहीं मानेंगे
केवल perception को ही हम सब कुछ मानेंगे, उसके beyond कोई ज्ञान मानेंगे नहीं|
केवल perception से जीवन चल नहीं सकता।
- अपने घर में खड़े हैं, बाहर से आवाज आई अरे पीछे घर के आग लग गई है, भागो। आपने कहा, न प्रत्यक्ष करेंगे पहले। अरे कोई भरोसेमंद आदमी कह रहा है कि आग लग गई है, तो मान लो, भागो वहां से।
- किसी ने आपको उठाया सोते हुए, अरे भूकंप आया। आपने कहा, मैंने तो नहीं महसूस किया। कह रहा है भाग-भाग चार झटके आ चुके हैं, पांचवा आने वाला है, आप कह रहे हैं ना पहले प्रत्यक्ष करूंगा। बाकी सब भाग गए, फिर पांचवा आया, समय नहीं मिला भागने का।
जीवन चलाने के लिए हमें perception के साथ और बहुत सारे ज्ञान के स्रोत मानने पड़ते हैं। Perception को अंतिम मानना एक तरह की मूर्खता ही है जो चार्वाकों ने की है| पर उस समय शायद इससे beyond वो नहीं सोच पा रहे थे।
आत्मा-ईश्वर की सतही व्याख्या
जिस तरह से आत्मा की, ईश्वर की व्याख्या उन्होंने की ("ईश्वर नहीं दिखता, इसलिए ईश्वर नहीं है।") वो भी सतही व्याख्या है।
सलीका ही नहीं शायद उन्हें महसूस करने का,
जो कहते हैं खुदा है तो नजर आना जरूरी है।वसीम बरेलवी
- हजार चीजें हैं (विचार, भावना) जो नजर नहीं आती, तब भी हो सकती हैं।
- उस समय उनको कितनी आकाश गंगाएं दिखती थीं? कितने तारे दिखते थे? अमेरिका-अफ्रीका कभी देखा उन लोगों ने।
- परमाणु कभी देखा। कोई इनसे पूछा बैक्टीरिया है कि नहीं, दिखता तो नहीं है। लैंस थे नहीं उस समय, माइक्रोस्कोप था नहीं,वायरस, न्यूक्लियस, प्रोटोन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन क्या मानते, बोलते हैं नहीं दिखता, नहीं होता|
- सब कुछ नहीं दिखता, लिमिट है देखने की हमारी। पर ये मान लेना कि जो नहीं दिखेगा वो खारिज कर देंगे।
- ईश्वर है ये भी साबित नहीं होता। पर एक Possibility के तौर पर आपको मानना पड़ता है कि ऐसा हो सकता है| सीधे खारिज नहीं कर सकते।
चार महाभूत मिलने का प्रत्यक्ष प्रमाण?
जगत के बारे में कह रहे हैं कि "जो चार महाभूत हैं अपने आप मिलते हैं", ये कैसे जान लिया?
- प्रत्यक्ष हुआ था आपको इसका। तुम्हारे सामने मिले कभी वो। क्या तुमने महाभूतों से चेतना को बनते हुए देखा कभी?
- वो तो नहीं देखा, यहां खुद अनुमान कर रहे हो, और बाकी लोग अनुमान करें तो आप कहते हो कि अनुमान गलत बात है। प्रमाण नहीं मानेंगे। और खुद अपनी philosophy पूरी base कर रखी है अुनुमान (inferences) पर।
सुख और केवल सुख
जो इनका ethics है अगर इसको मान लें तो समाज चल नहीं पाएगा।
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समाज में हर आदमी शिकारी और जंगली बनकर घूमता हुआ दिखेगा। कोई sensitivity समाज के प्रति, दूसरों के प्रति नजर नहीं आती है।
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ये केवल individual की बात करते हैं। केवल भोग की बात करते हैं। जो ऊंचे स्तर के सुख हैं जो समाज के सुख हैं, परोपकार का सुख है, उनको वैल्यू नहीं करते हैं|
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केवल और केवल सुख और सुखों के प्रति पागलपन बहुत खराब पागलपन होता है। कामायनी महाकाव्य में जयशंकर प्रसाद ने लिखा है कि केवल सुखों की खोज करने से प्रलय आ जाती है।
सुख, केवल सुख का वह संग्रह, केन्द्रीभूत हुआ इतना
छायापथ में नव तुषार सा, सघन मिलन होता जितना। -
मतलब देव सभ्यता में जब विनाश आया था, उसकी वजह थी सुखों के पीछे का पागलपन।