05 ऐतिहासिक विधि (Historical Method)

मूल प्रश्न:

  • समाज को समझने के लिए क्या हमें उसके अनोखे इतिहास 🗺️ में गहरा उतरना चाहिए?
  • या फिर ऐसे सामान्य नियम 📏 खोजने चाहिए जो सभी समाजों पर लागू हों?

समाजशास्त्र में ऐतिहासिक नज़रिए का सफर इसी सवाल के इर्द-गिर्द घूमता रहा है।


🏛️ ऐतिहासिक विधि क्या है?

  • अर्थ: समाज या संस्थाओं के बनने-बदलने की कहानी 📖 जानना
    • बदलाव क्यों हुए? कैसे हुए? यह समझना।
  • सबूत कहाँ से?
    • जटिल समाज: लिखे हुए रिकॉर्ड्स 📝 (सरकारी कागज़ात, दस्तावेज़)।
    • पुरानी, सरल संस्कृतियाँ (जिनका लिखा इतिहास नहीं है):
      • पुरानी चीज़ें 🏺 (कलाकृति, हथियार)।
      • लोगों की कही-सुनी बातें 🗣️ (मौखिक इतिहास)।
      • ये सब सुराग बन जाते हैं।

⏳ प्रारंभिक विचार: विकासवाद

  • 19वीं सदी के विचारक: मानते थे कि सारे समाज एक ही रास्ते 🛤️ पर आगे बढ़ते हैं
  • यह शुरुआती दौर था विकासवादियों (Evolutionists) का।
    • हर्बर्ट स्पेंसर, ऑगस्ट कॉम्ट: मानते थे कि समाज एक सीधी रेखा में विकसित होता है (जैसे कोई बच्चा बड़ा होता है)।
    • कॉम्ट का तीन चरणों का नियम: उनका ज़ोर इस बात पर था कि हर चीज़ शुरू कहाँ से हुई (उसकी जड़ें कहाँ हैं)।
  • अटपटा विचार? क्या इसे चुनौती नहीं मिली?

🗺️ चुनौती: नृवंशविज्ञानी और प्रसारवाद

  • नृवंशविज्ञानी (Ethnologists) आए: उन्होंने कहा, "नहीं भाई, हर समाज का अपना रास्ता 🛣️ है, अपनी कहानी 📜 होती है।"
    • उन्होंने वो एक-रेखीय विकास वाली बात को नकारा और खास संस्कृतियों पर ध्यान दिया
  • समानताएँ क्यों?
    • उनका मानना था कि संस्कृतियों में जो समानताएँ दिखती हैं, वो इसलिए हैं क्योंकि विचार और चीज़ें एक जगह से दूसरी जगह फैलीं
    • इसे प्रसार (Diffusion) कहते हैं (जैसे पानी में लहरें फैलती हैं)।
  • प्रसार पर अलग-अलग सोच:
    • जर्मनी (ग्रेब्नर आदि): सांस्कृतिक चीज़ें कैसे फैलीं, इसका पूरा इतिहास (कुलतुर हिस्टोरिश) पता लगाना ज़रूरी है।
    • ब्रिटेन (स्मिथ, पेरी): सारी अच्छी चीज़ें मिस्र 🇪🇬 से ही फैलीं पूरी दुनिया में।
    • अमेरिका (बोआस, क्रोबर): मामला इतना सीधा नहीं है। हाँ, प्रसार तो होता है, लेकिन हर संस्कृति अपने तरीके से चीज़ें अपनाती है, बदलती है, और अपनी नई चीज़ें भी बनाती है। उन्होंने आंकड़ों और भाषा, कलाकृतियाँ इन जैसी चीज़ों का भी इस्तेमाल किया (खासकर उन समाजों के लिए जिनका लिखा इतिहास नहीं था)।

⚙️ समाज कैसे काम करता है? संरचनात्मक-कार्यात्मक दृष्टिकोण

  • सवाल: संस्कृति फैलती कैसे है, यह तो ठीक है, लेकिन समाज काम कैसे करता है? इस पर कौन ध्यान दे रहा था?
  • ए.आर. रैडक्लिफ-ब्राउन (सामाजिक मानवविज्ञानी):
    • उन्होंने नृवंशविज्ञानी और सामाजिक मानवविज्ञानियों में फर्क किया।
    • कहा: "देखो भाई, यह पुरानी कहानियों का अंदाज़ा लगाने से बेहतर है कि हम आज समाज कैसे चल रहा है, इसके नियम समझें।"
    • नृवंशविज्ञानी अक्सर अतीत के खोए हुए पन्ने ढूंढ रहे थे, कई बार सिर्फ अंदाज़े लगाकर।
    • रैडक्लिफ-ब्राउन का फोकस: हमें वर्तमान समाज के चलने के सार्वभौमिक नियम (Universal Laws) समझने हैं, सामान्य नियम।
    • इसके लिए हमें फील्ड में जाकर देखना होगा, दस्तावेज़ देखने होंगे, सिर्फ पुराने किस्सों पर निर्भर नहीं रहना।
    • इतिहास का इस्तेमाल: वर्तमान सामाजिक संरचना और उसके काम को समझने में मदद के लिए हो, ना कि सिर्फ अतीत को फिर से लिखने के लिए।

बड़ा बदलाव? क्या इसका असर मुख्यधारा समाजशास्त्र पर भी पड़ा? हाँ, बिल्कुल।


🇩🇪 जर्मनी में ऐतिहासिक समाजशास्त्र

  • जर्मनी में प्रभाव:
    • लियोपोल्ड वॉन रैंके (इतिहासकार): इतिहास हवा-हवाई नहीं होना चाहिए, बल्कि ठोस सबूतों (दस्तावेज़ों) पर आधारित होना चाहिए – वस्तुनिष्ठ इतिहास (Objective History)
  • बड़े समाजशास्त्रियों द्वारा इतिहास का गहरा इस्तेमाल:
    • कार्ल मार्क्स: आर्थिक व्यवस्थाएँ ऐतिहासिक रूप से कैसे बदलीं?
    • मैक्स वेबर: कैसे प्रोटेस्टेंट धर्म के विचारों ने पूंजीवाद के विकास में भूमिका निभाई? (कृषि इतिहास पर भी काम था)
    • एमिल दुर्खीम: समाज में काम का बँटवारा (Division of Labour) समय के साथ कैसे विकसित हुआ? धर्म का सामाजिक जीवन में क्या रोल रहा?

❓ अनोखापन बनाम सामान्य नियम: एक स्थायी तनाव

  • मुश्किल: क्या हम किसी समाज की अनोखी कहानी 📜 पर ध्यान दें या फिर सभी समाजों पर लागू होने वाले सामान्य नियम 📏 खोजें?
  • यह तनाव हमेशा रहा है। 20वीं सदी में यह बहस खूब चली।
  • ऐतिहासिक विशिष्टता (Historical Uniqueness) बनाम वैज्ञानिक सामान्यीकरण (Scientific Generalization)

🇮🇳 भारत में ऐतिहासिक विधि

  • इसकी अपनी कहानी है।
  • शुरुआती दौर:
    • जी.एस. घुरिए, इरावती कर्वे: पुराने ग्रंथों और महाकाव्यों का इस्तेमाल किया (जाति व्यवस्था, नातेदारी समझने के लिए)।
  • बाद में:
    • ए.आर. देसाई, डी.एन. धनगारे: सरकारी दस्तावेज़ों और अभिलेखों का इस्तेमाल किया, लेकिन ज़्यादा आलोचनात्मक नज़रिए 👀 से (सत्ता कैसे काम करती है, समाज में असमानताएँ कैसे बनी रहती हैं)। यह रैंके वाली बात से जुड़ता है, पर सवाल पूछते हुए।

🎯 निष्कर्ष: एक बदलती और विकसित होती विधि

  • समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि कोई एक बनी-बनाई चीज़ नहीं है। यह पत्थर की लकीर 🗿 नहीं है।
  • यह समय के साथ बदली है, विकसित हुई है
  • इस्तेमाल:
    • कभी समाज की शुरुआत जानने के लिए।
    • कभी किसी खास संस्कृति को समझने के लिए।
    • कभी बड़े सामाजिक बदलावों के पैटर्न खोजने के लिए।
  • यह सिर्फ अतीत की धूल झाड़ना नहीं है, बल्कि यह समझने का एक औज़ार 🛠️ है कि हम आज जहाँ हैं, वहाँ कैसे पहुँचे।

🤔 श्रोताओं के लिए सवाल

हम आज समाज को जिन नज़रियों से देखते हैं, जिन सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं, क्या वे भी भविष्य के समाजशास्त्रियों के लिए अध्ययन का एक ऐतिहासिक दौर बन जाएँगे? मतलब, आज के हमारे सच, हमारे सिद्धांत, कल के लिए इतिहास कैसे बन सकते हैं? इस पर सोचा जा सकता है।



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