June 2022
1. सामाजिक शोध में समाजशास्त्रीय कल्पना पर एक टिप्पणी लिखिए। (इकाई 1)
दिए गए स्रोतों में 'समाजशास्त्रीय कल्पना' (sociological imagination) शब्द की सीधी व्याख्या या परिभाषा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, सामाजिक शोध को ज्ञान की एक विशेष खोज और दैनिक उलझनों को सुलझाने की स्थिति के मामले में समझा जा सकता है, जिसमें किसी विषय के बारे में अधिक जानने के लिए तार्किक दृष्टिकोण से जाँच की जाती है।
2. मात्रात्मक शोध की महत्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (इकाई 9)
मात्रात्मक अनुसंधान की कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं, और इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:
- चरण (Stages): मात्रात्मक अनुसंधान में कुछ सामान्य और विशिष्ट चरण शामिल होते हैं, जिनमें समस्या का निरूपण, अध्ययन का तरीका, डेटा संग्रह, डेटा प्रसंस्करण, आँकड़े विश्लेषण, निष्कर्षों की व्याख्या करना और शोधकार्यों की रिपोर्ट लिखना शामिल हैं। हालाँकि, मात्रात्मक अनुसंधान के अपने विशिष्ट तत्व होते हैं जो इसे गुणात्मक अनुसंधान से अलग करते हैं।
- दृष्टिकोण (Approaches): मात्रात्मक सामाजिक अनुसंधान में विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें व्यापक रूप से दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है: प्रायोगिक अनुसंधान डिज़ाइन और गैर-प्रायोगिक अनुसंधान डिज़ाइन।
- प्रयोजन (Causality): मात्रात्मक अनुसंधान अवधारणाओं के बीच प्रयोजनार्थ संबंधों की स्थापना से संबंधित होता है। इसमें स्वतंत्र और आश्रित चर का उपयोग करके कारण कल्पना की जाँच की जाती है। आंतरिक वैधता, चरों के बीच कारण संबंध से संबंधित सभी वैकल्पिक स्पष्टीकरणों को रद्द करने में मदद करती है।
- सामान्यीकरण (Generalisation): मात्रात्मक अनुसंधान में प्राप्त निष्कर्षों का बड़े जनसमुदाय या जनसंख्या पर सामान्यीकरण किया जाता है।
3. उपयुक्त उदाहरणों के साथ सामाजिक शोध के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए। (इकाई 1)
अनुसंधान को ज्ञान की एक विशेष खोज के रूप में समझा जा सकता है, जो किसी विषय के बारे में अधिक जानने के लिए तार्किक दृष्टिकोण अपनाता है। यह सामान्य दैनिक उलझनों को सुलझाने में भी सहायक होता है।
अनुसंधान के उद्देश्यों को समझने के लिए, हम सामाजिक प्रभाव आकलन अनुसंधान का एक उदाहरण देख सकते हैं:
- सामाजिक प्रभाव आकलन अनुसंधान: इसका उद्देश्य एक नियोजित परिवर्तन के संभावित परिणामों का अनुमान लगाना होता है। इस तरह के मूल्यांकन का उपयोग वैकल्पिक नीतियों के बीच चयन और योजना बनाने के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार का शोध कई परिणामों की जांच करता है और अक्सर एक अंतःविषय अनुसंधान टीम में काम करता है, जहाँ कई क्षेत्रों पर प्रभाव को मापा या मूल्यांकन किया जा सकता है।
संक्षेप में, अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य किसी विषय के बारे में गहन जानकारी प्राप्त करना, समस्याओं का समाधान खोजना और नियोजित परिवर्तनों के प्रभावों का आकलन करना होता है, जो तार्किक और व्यवस्थित जांच पर आधारित होता है।
4. समाजशास्त्रीय सिद्धांत पर आनुभविक शोध के प्रभाव का वर्णन कीजिए। (इकाई 2)
समाजशास्त्रीय सिद्धांत और शोधकार्य के बीच गहरा संबंध होता है। समाजशास्त्रीय सिद्धांत शब्द का उपयोग कई संबंधित लेकिन अलग-अलग गतिविधियों के परिणामों को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जिनका अनुभवजन्य सामाजिक अनुसंधान पर काफी अलग-अलग प्रभाव होता है। रॉबर्ट मर्टन ने कार्यविधि के छह विभिन्न प्रकार बताए हैं, जो एक साथ मिलकर एक सिद्धांत को प्रतिपादित करते हैं, और इनमें आनुभविक शोध का योगदान स्पष्ट होता है:
- प्रविधि (Methodology): अनुसंधान में उपयोग की जाने वाली विधियाँ सिद्धांत को आकार देती हैं।
- सामान्य समाजशास्त्रीय अभिविन्यास (General Sociological Orientation): यह शोध की दिशा और सैद्धांतिक दृष्टिकोण को प्रभावित करता है।
- समाजशास्त्रीय अवधारणाओं का विश्लेषण (Analysis of Sociological Concepts): अनुसंधान के माध्यम से अवधारणाओं को स्पष्ट और परिष्कृत किया जाता है, जिससे सिद्धांत का विकास होता है।
- तथ्यात्मक समाजशास्त्रीय व्याख्याएँ (Factual Sociological Explanations): अनुसंधान से प्राप्त तथ्य सिद्धांत की व्याख्याओं को आधार प्रदान करते हैं।
- समाजशास्त्र में आनुभविक सामान्यीकरण (Empirical Generalizations in Sociology): यह वह बिंदु है जहाँ आनुभविक शोध सीधे सिद्धांत को प्रभावित करता है। अनुभवजन्य अवलोकनों और निष्कर्षों के आधार पर सामान्यीकरण किए जाते हैं, जो आगे चलकर सिद्धांत के निर्माण और परिष्करण में योगदान करते हैं।
- समाजशास्त्रीय सिद्धांत (Sociological Theory): यह इन सभी तत्वों का अंतिम परिणाम है, जहाँ आनुभविक शोध से प्राप्त ज्ञान सिद्धांत को मजबूत और विकसित करता है।
इस प्रकार, अनुभवजन्य शोध समाजशास्त्रीय सामान्यीकरणों के माध्यम से सिद्धांत को समृद्ध करता है, जिससे सिद्धांत को वास्तविक सामाजिक घटनाओं के आधार पर विकसित किया जा सके।
5. वस्तुनिष्ठता पर दुर्खीम के विचारों की व्याख्या कीजिए। (इकाई 3)
एमिल दुर्खीम ने समाजशास्त्रीय अध्ययन में वस्तुनिष्ठता पर विशेष जोर दिया। हालांकि स्रोतों में उनकी वस्तुनिष्ठता की अवधारणा की सीधी और विस्तृत परिभाषा नहीं दी गई है, उनके कार्य और दृष्टिकोण से यह स्पष्ट होता है कि वे तथ्यात्मक और व्यवस्थित अध्ययन को महत्वपूर्ण मानते थे।
- तुलनात्मक समाजशास्त्र: दुर्खीम का मानना था कि तुलनात्मक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक विशेष शाखा नहीं है, बल्कि यह स्वयं समाजशास्त्र है, जब तक कि यह केवल वर्णनात्मक होना बंद करके तथ्यों का विवरण प्रस्तुत करने की आकांक्षा रखता है। यह इस बात पर बल देता है कि समाजशास्त्र को व्यक्तिपरक विवरणों से परे जाकर वस्तुनिष्ठ तथ्यों की खोज करनी चाहिए।
- ऐतिहासिक पद्धति का उपयोग: दुर्खीम ने अपने कार्यों जैसे 'द डिवीजन ऑफ लेबर ऑफ सोसाइटी' और 'द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रिलीजियस लाइफ' में फ्रांस के इतिहासकार फर्स्टेल डी कूलेंजेस की रचनाओं का उपयोग किया। उन्होंने 'ल'अन्नी सोशलोजिक' नामक एक पत्रिका भी स्थापित की, जिसका उद्देश्य इतिहास पर पुस्तकों की समीक्षा करना था। यह उनके ऐतिहासिक स्रोतों के व्यवस्थित और आलोचनात्मक मूल्यांकन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो वस्तुनिष्ठता की दिशा में एक कदम है।
सारांश में, दुर्खीम के विचार समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने पर केंद्रित थे, जिसमें व्यक्तिपरक राय के बजाय तथ्यों के वस्तुनिष्ठ विश्लेषण के माध्यम से सामाजिक जीवन को समझा जा सके।
6. प्रायोगिक शोध के विभिन्न आयामों पर चर्चा कीजिए। (इकाई 9)
दिए गए स्रोतों में 'प्रायोगिक अनुसंधान' को मात्रात्मक सामाजिक अनुसंधान के विभिन्न दृष्टिकोणों में से एक के रूप में उल्लेख किया गया है। इसे 'गैर-प्रायोगिक अनुसंधान डिजाइन' के साथ व्यापक रूप से दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है। हालाँकि, स्रोतों में प्रायोगिक अनुसंधान के विशिष्ट आयामों या विशेषताओं का विस्तृत वर्णन उपलब्ध नहीं है।
7. गुणात्मक शोध के लक्ष्यों पर चर्चा कीजिए। (इकाई 10)
गुणात्मक अनुसंधान के कई महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं, जो इसे मात्रात्मक अनुसंधान से भिन्न बनाते हैं:
- खोज और नए तथ्यों का खुलासा: गुणात्मक अनुसंधान अक्सर सत्यापन और समीक्षा करने के बजाय अधिकतर खोज करने या नए तथ्यों की खोज और खुलासा करने के काम में लगा रहता है। यह नए अध्ययनों से ज्ञात तथ्यों के कई अज्ञात आयामों को सामने लाता है।
- समझ और पहचान: यह अनुसंधान नए अनुष्ठानों, व्यवहार के पैटर्न, सामाजिक संरचनाओं और प्रक्रियाओं को खोजने में मदद करता है। यह हमें पुराने और पहले से ही शोधित वस्तुओं पर नए सिरे से खोजने, पता करने और देखने में भी मदद करता है। इसके अलावा, यह परिवर्तन के अज्ञात रुझानों की पहचान करने में सहायक होता है।
- गैर-बाध्यकारी दृष्टिकोण: गुणात्मक शोध अध्ययन हमेशा प्राचीन दृष्टिकोण के मानदंडों या परिकल्पना परीक्षण के अधिक संरचित नियमों द्वारा बाध्य नहीं होता है। इसमें अनुभवजन्य दुनिया के प्रति स्पष्ट झुकाव के साथ अनुसंधान के प्रेरक रूप के प्रति एक स्वाभाविक झुकाव होता है।
- व्यवस्थित अध्ययन: गुणात्मक शोध में व्यक्तियों और समूहों के प्रतिरूपित व्यवहारों और आचरणों का एक व्यवस्थित रूप से अध्ययन करने की क्षमता होती है।
संक्षेप में, गुणात्मक अनुसंधान का लक्ष्य गहराई से समझना, नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करना, छिपे हुए पैटर्न को उजागर करना और सामाजिक वास्तविकताओं का एक समृद्ध और संदर्भ-विशिष्ट विवरण प्रदान करना है।
8. सामाजिक शोध में अवलोकन के महत्व की व्याख्या कीजिए। (इकाई 10)
सामाजिक शोध में, विशेष रूप से गुणात्मक डेटा एकत्र करने के लिए, अवलोकन और भागीदारी एक महत्वपूर्ण विधि है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट होता है:
- क्षेत्र-कार्य में प्रवेश और तालमेल: शोधकर्ता को सामाजिक ढांचे/विन्यास (सेट-अप) में खुद को तैयार करना पड़ता है जिसमें वह भाग लेने के लिए प्रवेश करने वाला है। इसमें व्यक्तिगत और मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है ताकि संभावित उत्तरदाताओं के साथ तालमेल विकसित किया जा सके।
- पारस्परिक बातचीत: शोधकर्ता को निर्धारित समय के भीतर सेटिंग में साक्षात्कारकर्ताओं के साथ बातचीत करने और फिर से बातचीत करने की आवश्यकता होती है।
- रणनीतिक निर्णय लेना: अवलोकन प्रक्रिया गुणात्मक साक्षात्कार की तुलना में अधिक लचीली होती है, लेकिन फिर भी प्रक्रियात्मक और व्यवस्थित दृष्टिकोण की मांग करती है। इसमें यह निर्णय लेना महत्वपूर्ण होता है कि किस बारे में पूछताछ की जाए, किसके साथ बातचीत की जाए, किसी संदर्भ में बातचीत का आपसी विनिमय कैसे प्राप्त किया जाए, घटनाओं के दिए गए अनुक्रम को कैसे ट्रैक किया जाए, और अधिक से अधिक प्रासंगिक अवलोकन और टिप्पणियाँ कैसे की जाएं।
- प्रासंगिक आँकड़े निर्माण और अर्थपूर्ण टिप्पणियाँ: व्यवस्थित भागीदारी और सटीक अवलोकन आवश्यक होते हैं क्योंकि यह प्रासंगिक आँकड़े उत्पन्न करने और अर्थपूर्ण टिप्पणियों को प्रबंधित करने में मदद करता है। इसके बिना, शोधकर्ता पूर्व-नियोजित विचार या सार्थक कार्यों के बिना क्षेत्र की सेटिंग में "इर्द-गिर्द मंडराने" में समय और ऊर्जा बर्बाद कर सकता है।
इसलिए, सामाजिक शोध में अवलोकन का महत्व गहराई से समझने, वास्तविक संदर्भ में डेटा एकत्र करने और शोधकर्ता को विषय की दुनिया में डूबने की अनुमति देने में निहित है, जिससे समृद्ध और गहन अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।