December 2021
प्रश्न 1: सामाजिक शोध से आप क्या समझते हैं? यह ‘सामान्य बोध’ से किस प्रकार भिन्न है? (इकाई 1)
सामाजिक शोध (Social Research) दुनिया को बेहतर तरीके से समझने के लिए प्रयोजन और उद्देश्य के साथ सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें यह जानने का प्रयास किया जाता है कि लोग क्या और कैसे व्यवहार करते हैं। यह परीक्षा, पुन: अन्वेषण और पुनर्निरीक्षण की प्रक्रिया पर जोर देता है। सामाजिक अनुसंधान एक व्यवस्थित और नियंत्रित प्रक्रिया है जिसमें तथ्य और आंकड़ों को इकट्ठा किया जाता है और उनका विश्लेषण किया जाता है। शोध कार्य किसी प्रशिक्षित और योग्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है। सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य किसी विषय के बारे में ज्ञान खोजना और सत्यापित करना होता है।
सामाजिक शोध 'सामान्य बोध' (Common Sense) से कई मायनों में भिन्न होता है। सामान्य बोध लोगों के रोजमर्रा के जीवन और उनकी गतिविधियों का परिणाम होता है। यह अक्सर स्थानीय ज्ञान होता है और व्यक्तिपरक अनुभवों पर आधारित हो सकता है। सामान्य बोध हमारे दैनिक जीवन में मार्गदर्शन करता है। हालांकि, यह अव्यवस्थित, अनिश्चित और स्थायी नहीं होता है। सामाजिक शोध, इसके विपरीत, एक व्यवस्थित और प्रशिक्षित कार्य है जिसमें निरीक्षण, वास्तविकता की पुन: परीक्षण और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग शामिल है। सामाजिक शोध में सिद्धांत, नियम और बार-बार दोहराने की आवश्यकता होती है। इसमें तर्क, सिद्धांत या विचारों को एक व्यवस्थित तरीके से तथ्यों के साथ जोड़ा जाता है और अपनी कल्पना और रचनात्मकता का उपयोग करता है। सामाजिक शोध व्यवस्थित तरीकों से तथ्यों और आंकड़ों को इकट्ठा करके और उनका विश्लेषण करके ज्ञान उत्पन्न करता है। यह सामान्य ज्ञान की तुलना में अधिक विश्वसनीय और निष्पक्ष ज्ञान प्रदान करता है। सामाजिक शोध में, व्यक्तिपरक अनुभवों के बजाय वैज्ञानिक ज्ञान पर जोर दिया जाता है। यह सामान्य बोध से बहुत अधिक व्यवस्थित और कठोर होता है। समाजशास्त्र सामान्य बोध से आगे बढ़कर व्यवस्थित और व्यवस्थित तरीके से दुनिया को समझने का प्रयास करता है।
प्रश्न 2: सामाजिक सिद्धांत से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न तत्वों की चर्चा कीजिए। (इकाई 2)
एक सिद्धांत (Theory) विचारों का एक समूह है जो किसी घटना या सामाजिक जीवन के पहलू की व्याख्या करने का प्रयास करता है। सामाजिक सिद्धांत परस्पर संबंधित विचारों के परस्पर रूप से परिभाषित सेट हैं जो सामाजिक दुनिया के काम करने और व्यवस्थित करने के तरीके की व्याख्या करते हैं। यह तर्क, सिद्धांत या विचारों को एक व्यवस्थित तरीके से तथ्यों के साथ जोड़ता है। सिद्धांत हमें व्यवस्थित ज्ञान प्रदान करते हैं और वास्तविकता को समझने में मदद करते हैं।
सामाजिक सिद्धांत के विभिन्न तत्वों में शामिल हैं:
- अवधारणाएं (Concepts): अवधारणाएं किसी शोध प्रक्रिया का केंद्रीय तत्व होती हैं और वास्तविकता को समझने और बेहतर ढंग से देखने में मदद करती हैं। ये महत्वपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि ये दुनिया की परिघटनाओं को समझने में मदद करती हैं। अवधारणाएं ज्ञान निर्माण का आधार होती हैं।
- चर (Variables): चर घटनाओं या वास्तविकताओं के ऐसे लक्षण हैं जो परिवर्तनीय होते हैं। सामाजिक विज्ञानों में, चर हेरफेर योग्य (manipulated) हो सकते हैं। ये किसी समूह के सदस्यों में विभिन्न स्तरों, मात्रा या तीव्रता पर मौजूद होते हैं। चर महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे भीतर भिन्नता दिखाते हैं।
- कथन और प्रारूप (Statement and Formats): सिद्धांत अवधारणाओं को एक दूसरे से जोड़ते हैं और उनके बीच संबंध व्यक्त करते हैं। ये कथन एक तार्किक संरचना प्रदान करते हैं। सिद्धांत को परिभाषित करने के लिए विभिन्न प्रारूपों या तरीके हो सकते हैं।
सिद्धांत ज्ञान के विकास और शोध को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे अनुभवजन्य शोध के निष्कर्षों से प्रभावित होते हैं और उन्हें प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 3: सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता पर कार्ल पॉपर के विचारों की व्याख्या कीजिए। (इकाई 3)
स्रोतों में कार्ल पॉपर के सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता पर सीधे विचार इकाई 3, खंड 3.4 में दिए गए हैं। पॉपर के अनुसार, सामाजिक विज्ञान और मानव विज्ञान परस्पर विनिमय करने योग्य मामले हैं। पॉपर ने पूरी तरह से निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता को विज्ञान के मुख्य विशेषता के रूप में देखा। पॉपर के अनुसार, वैज्ञानिक ज्ञान को उसकी वस्तुनिष्ठता के कारण विश्वसनीय माना जाता है।
पॉपर ने कहा कि सामाजिक जीवन में वस्तुनिष्ठता को प्राप्त करना संभव है। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को व्यक्तिपरक विचारों, विश्वासों और मूल्यों के बजाय निष्कर्ष उत्पन्न करने और निष्कर्षों का परीक्षण करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। समाज में विज्ञान के आधार के रूप में वैज्ञानिक ज्ञान को अवसर देना चाहिए और वस्तुनिष्ठता को प्राप्त करने के लिए यह एक आदर्श है। पॉपर का मत है कि वस्तुनिष्ठता शोध के तरीकों में होती है, न कि शोधकर्ता के व्यक्ति में। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि तार्किक पद्धति के अनुसार सामाजिक घटनाओं का अध्ययन किया जा सकता है। पॉपर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वस्तुनिष्ठता शोध के तरीकों से आकलित करने का एक सफल तरीका है।
कुल मिलाकर, पॉपर का मानना था कि सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता प्रक्रिया और पद्धति के पालन से प्राप्त की जा सकती है, न कि शोधकर्ता के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों को दूर करने से।
प्रश्न 4: ‘प्रतिवर्तन’ पर गोल्डनर के विचारों की चर्चा कीजिए। (इकाई 4)
प्रतिवर्तन (Reflexivity) एक प्रक्रिया है जिसमें एक शोधकर्ता डेटा संग्रह और व्याख्या की प्रक्रिया को देखता है और उसे प्रतिवर्तित करता है। यह ज्ञान की जांच, जागरूकता और सच्चाईयों की खोज के रूप में ज्ञान का एक रूप है। गोल्डनर ने प्रतिवर्तन को सामाजिक विज्ञान में, विशेष रूप से समाजशास्त्र में, एक महत्वपूर्ण अवधारणा माना। उनके अनुसार, प्रतिवर्तन का अर्थ है कि शोधकर्ता अपनी दुनिया को कैसे समझते हैं। गोल्डनर का विचार था कि शोधकर्ता जिस वास्तविकता का अध्ययन कर रहे हैं, वह उसी वास्तविकता का हिस्सा होते हैं जिसे वे प्रस्तुत कर रहे हैं। इसलिए, शोधकर्ता को अपने स्वयं के स्थान और भूमिका पर विचार करना चाहिए।
गोल्डनर के अनुसार, प्रतिवर्तन का उद्देश्य दूसरों पर अपने प्रभाव को हटाना नहीं है, बल्कि उनके स्वयं के प्रभाव को समझना है और परिवर्तन के प्रभावों को देखना है। प्रतिवर्तन समाजशास्त्री को अपनी वैज्ञानिक भूमिकाओं की अवधारणा और उनके काम में समाजशास्त्र की भूमिका के प्रति जागरूकता विकसित करने में मदद करता है। गोल्डनर का मानना था कि यह समाजशास्त्रीय ज्ञान के विकास के लिए आवश्यक है। यह शोधकर्ता को अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों और मान्यताओं को पहचानने में मदद करता है जो उनके शोध को प्रभावित कर सकते हैं।
प्रतिवर्तन का तात्पर्य है कि ज्ञान जानकारी का रूप है, लेकिन सच्चाइयों को जानने के रूप में वास्तविकता भी है। गोल्डनर ने तर्क दिया कि प्रतिवर्तन समाजशास्त्रियों को उनकी सामाजिक संरचनाओं के संपादन को समझने में मदद करता है।
प्रश्न 5: समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानवविज्ञान में निगमन विधि की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए। (इकाई 2)
प्रदान किए गए स्रोतों में समाजशास्त्र और सामाजिक मानवविज्ञान में निगमन विधि (Deductive Method) की उपयोगिता पर विस्तृत चर्चा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, स्रोतों में सिद्धांत निर्माण के तरीकों में निगमनात्मक (Deductive) दृष्टिकोण का उल्लेख किया गया है। निगमनात्मक सिद्धांत वह है जो तर्क और पूर्वानुमानों के माध्यम से तथ्यों को स्थापित करता है।
स्रोतों में विभिन्न शोध विधियों, जैसे मात्रात्मक, गुणात्मक, ऐतिहासिक, नृजातीयपद्धति, और प्रयोगात्मक शोध की चर्चा की गई है। इनमें से कुछ विधियां निगमनात्मक तर्क का उपयोग कर सकती हैं (जैसे मात्रात्मक और प्रयोगात्मक शोध जहां परिकल्पनाओं का परीक्षण किया जाता है)। हालांकि, स्रोतों में विशेष रूप से समाजशास्त्र और सामाजिक मानवविज्ञान में निगमनात्मक विधि की उपयोगिता को अलग से विस्तार से नहीं समझाया गया है।
प्रश्न 6: नृजातीयपद्धति शोध की विशेषताओं की चर्चा कीजिए। (इकाई 7)
नृजातीयपद्धति (Ethnomethodology) लोगों द्वारा अपने दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले व्यवहारिक कार्यों और विधियों का अध्ययन है। यह इस बात पर केंद्रित है कि लोग अपनी दुनिया को कैसे समझते हैं और उसका निर्माण कैसे करते हैं। नृजातीयपद्धति सामाजिक तथ्यों को वस्तुनिष्ठ वास्तविकता के रूप में देखने के बजाय यह देखती है कि लोग सामाजिक वास्तविकता का निर्माण कैसे करते हैं।
नृजातीयपद्धति शोध की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- दैनिक जीवन पर ध्यान: यह रोजमर्रा की गतिविधियों और आमने-सामने की बातचीत पर केंद्रित है। यह समझने की कोशिश करता है कि लोग अपनी सामाजिक दुनिया को कैसे 'करते हैं'।
- सामान्य बोध के तरीकों का अध्ययन: यह उन तरीकों का अध्ययन करती है जिनका उपयोग लोग अपनी गतिविधियों को समझने योग्य बनाने के लिए करते हैं, जिसे गैर्फिंकल आलेखीय विधि (Documentary Method) कहते हैं।
- अनुक्रमणीयता (Indexicality): यह एक अवधारणा है जिसका अर्थ है कि शब्दों या अभिव्यक्तियों का अर्थ उनके विशेष संदर्भ पर निर्भर करता है। नृजातीयपद्धति इस बात पर ध्यान देती है कि कैसे लोग संदर्भ का उपयोग करके अर्थ निकालते हैं।
- खाता / ब्यौरा (Accounts): लोग अपने कार्यों और स्थितियों की व्याख्या करने के लिए जो विवरण या औचित्य प्रदान करते हैं, वे 'खाते' कहलाते हैं। नृजातीयपद्धति इन खातों का अध्ययन करती है कि वे कैसे बनाए जाते हैं और कैसे कार्य करते हैं।
- पारंपरिक समाजशास्त्र से भिन्न: नृजातीयपद्धति पारंपरिक समाजशास्त्र से अलग है क्योंकि यह सामाजिक संरचनाओं या संस्थानों के बजाय व्यक्तियों की गतिविधियों और तरीकों पर केंद्रित है।
- उल्लंघन प्रयोग (Breach Experiments): गैर्फिंकल ने सामाजिक मानदंडों को तोड़ने और लोगों की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए उल्लंघन प्रयोगों का उपयोग किया।
नृजातीयपद्धति का उद्देश्य यह समझना है कि लोग अपनी सामाजिक दुनिया को कैसे समझते हैं और उसका निर्माण करते हैं।
प्रश्न 7: परिमाणात्मक शोध की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। (इकाई 9)
परिमाणात्मक शोध (Quantitative Research) एक प्रकार का सामाजिक अनुसंधान है जो मात्रात्मक डेटा पर आधारित होता है। यह अक्सर प्राकृतिक विज्ञान दृष्टिकोण का उपयोग करता है।
परिमाणात्मक शोध की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- मात्रात्मक डेटा का उपयोग: यह संख्यात्मक डेटा को इकट्ठा करने और उसका विश्लेषण करने पर केंद्रित है।
- मापन (Measurement): परिमाणात्मक शोध में, घटनाओं या गुणों को मापा जाता है और उन्हें संख्यात्मक मान दिया जाता है। इसमें चर (variables) का उपयोग किया जाता है।
- सांख्यिकीय विश्लेषण: डेटा का विश्लेषण करने और निष्कर्ष निकालने के लिए सांख्यिकीय विधियों का उपयोग किया जाता है।
- वस्तुनिष्ठता पर जोर: इसका लक्ष्य वस्तुनिष्ठ और सटीक निष्कर्ष प्राप्त करना होता है।
- सामान्यीकरण (Generalization): इसका उद्देश्य परिणामों को बड़ी आबादी या अन्य संदर्भों पर सामान्यीकृत करना होता है।
- संरचित दृष्टिकोण: डेटा संग्रह और विश्लेषण अक्सर संरचित तरीकों का पालन करते हैं (जैसे संरचित प्रश्नावली या सर्वेक्षण)।
- परिकल्पना परीक्षण: यह अक्सर परिकल्पनाओं के परीक्षण पर केंद्रित होता है।
- प्रयोगात्मक और गैर-प्रयोगात्मक डिजाइन: परिमाणात्मक शोध में प्रयोगात्मक (experimental) और गैर-प्रयोगात्मक (non-experimental) डिजाइन शामिल हो सकते हैं।
परिमाणात्मक शोध का उद्देश्य घटनाओं के बीच संबंधों को मापना, पैटर्न की पहचान करना और सिद्धांतों का परीक्षण करना है। यह "क्या?" और "कितना?" जैसे प्रश्नों का उत्तर देने में उपयोगी है।
प्रश्न 8: प्रयोगात्मक शोध की विशेषताओं की चर्चा कीजिए। (इकाई 9)
प्रयोगात्मक शोध (Experimental Research) परिमाणात्मक शोध का एक प्रकार है। यह प्राकृतिक विज्ञान दृष्टिकोण पर आधारित होता है और इसमें चरों में हेरफेर करना और उनके प्रभावों को मापना शामिल है।
प्रयोगात्मक शोध की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- चरों का नियंत्रण: प्रयोगात्मक शोध में, शोधकर्ता एक चर (स्वतंत्र चर) में हेरफेर करता है ताकि वह दूसरे चर (आश्रित चर) पर इसके प्रभाव को माप सके। अन्य बाहरी चर को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देखा गया प्रभाव स्वतंत्र चर के कारण है।
- नियंत्रण समूह: अक्सर एक नियंत्रण समूह का उपयोग किया जाता है जिसे स्वतंत्र चर के संपर्क में नहीं लाया जाता है, ताकि उपचार समूह के साथ तुलना की जा सके।
- यादृच्छिक असाइनमेंट (Random Assignment): प्रतिभागियों को उपचार और नियंत्रण समूहों में यादृच्छिक रूप से सौंपा जाता है ताकि समूहों को तुलनात्मक बनाया जा सके।
- कारण और प्रभाव संबंध की स्थापना: प्रयोगात्मक शोध का मुख्य उद्देश्य चरों के बीच कारण और प्रभाव संबंध स्थापित करना है।
- मात्रात्मक डेटा: इसमें मापा जाने वाला डेटा मात्रात्मक होता है।
- पुनरावृति (Replication): प्रयोगात्मक डिजाइन को इस तरह से संरचित किया जाता है कि अध्ययन को दोहराया जा सके।
- प्रयोगशाला या क्षेत्र: प्रयोग नियंत्रित प्रयोगशाला सेटिंग्स या प्राकृतिक क्षेत्र सेटिंग्स में किए जा सकते हैं。
- उच्च वस्तुनिष्ठता: नियंत्रण और मापन के कारण, प्रयोगात्मक शोध को उच्च स्तर की वस्तुनिष्ठता प्राप्त करने का प्रयास करता है।
प्रयोगात्मक शोध वैज्ञानिक विधि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसका उपयोग विशेष रूप से घटनाओं के बीच कारण संबंधों की पहचान करने के लिए किया जाता है।