December 2023

1. सामाजिक शोध में समाजशास्त्रीय कल्पना के महत्व की व्याख्या कीजिए। (इकाई 1)

प्रदान किए गए स्रोतों में, समाजशास्त्रीय कल्पना (sociological imagination) को सामाजिक अनुसंधान के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण अवधारणा के रूप में उल्लिखित किया गया है। इकाई 1 का सारांश बताता है कि इस इकाई में सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति और इसके विकल्पों के साथ-साथ समाजशास्त्रीय कल्पना के उपयोग और सामाजिक अनुसंधान में इसकी उपयोगिता पर भी चर्चा की गई है। हालांकि, दिए गए स्रोतों में समाजशास्त्रीय कल्पना की विस्तृत परिभाषा या इसके विशिष्ट महत्व की विस्तृत व्याख्या उपलब्ध नहीं है।

2. सामाजिक शोध से आपका क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न तत्वों की चर्चा कीजिए। (इकाई 1)

सामाजिक शोध को सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान कार्य के रूप में समझा जाता है। यह सामाजिक दुनिया को बेहतर तरीके से समझने और सामाजिक समस्याओं के ठोस समाधान प्रदान करने का एक व्यवस्थित प्रयास है। इसका उद्देश्य सामाजिक तथ्यों, घटनाओं और परिवर्तनों की व्याख्या करना है।

सामाजिक शोध में विभिन्न प्रकार की गतिविधियां शामिल होती हैं:

  • डेटा संग्रह (Data collection): वास्तविकता का विश्लेषण करने के लिए जानकारी इकट्ठा करना।
  • निष्कर्ष निकालना (Inference): एकत्रित जानकारी से निष्कर्ष पर पहुंचना।
  • व्याख्या करना (Interpretation): एकत्रित जानकारी को अर्थ प्रदान करना।
  • विश्लेषण (Analysis): डेटा और वास्तविकता का विश्लेषण करना।
  • अनुसंधान प्रणालियों, उपकरणों और तकनीकों की जांच (Examining research systems, tools and techniques): यह सुनिश्चित करने के लिए कि शोध सुसंगत पैटर्न का पालन करे और डेटा संग्रह व विश्लेषण में बाधा न आए।
  • अवलोकन और प्रयोगात्मक परीक्षण (Observation and experimental testing): ये भी सामाजिक शोध के आवश्यक पहलू हैं।

सामाजिक शोध को व्यवस्थित और अनुभवजन्य (systematic and empirical) माना जाता है, जो सामान्य ज्ञान से भिन्न होता है, क्योंकि यह व्यक्तिगत अनुभव या उपाख्यानों पर आधारित नहीं होता। इसका मुख्य उद्देश्य किसी घटना को केवल वर्णित करने के बजाय उसे समझना है।

3. समाजशास्त्र 'मूल्य-मुक्त' कैसे हो सकता है? आदर्श प्रकार के उपयुक्त उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। (इकाई 3)

मूल्य-मुक्त समाजशास्त्र (Value-free sociology) का अर्थ है कि समाजशास्त्र में शोधकर्ताओं के व्यक्तिगत मूल्यों और आर्थिक हितों द्वारा सामाजिक विश्लेषण की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करना चाहिए। यह दृष्टिकोण मैक्स वेबर के विचारों से जुड़ा है, जिन्होंने सामाजिक विज्ञान में वस्तुनिष्ठता पर जोर दिया था।

आदर्श प्रकार (Ideal Type) एक अवधारणात्मक उपकरण (conceptual tool) है जो यथार्थ का एक मानसिक निर्माण (mental construction) होता है। यह वास्तविक दुनिया में हूबहू नहीं पाया जा सकता है, लेकिन यह घटनाओं को समझने और सामाजिक यथार्थ का अध्ययन करने के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है। आदर्श प्रकार समाजशास्त्रीय अवधारणाओं के निर्माण में भी सहायक होते हैं।

मैक्स वेबर ने समाजशास्त्र को मूल्य-मुक्त बनाने की वकालत की, जिसका अर्थ है कि शोधकर्ताओं को अपने व्यक्तिगत मूल्यों और हितों को सामाजिक विश्लेषण की प्रक्रिया से अलग रखना चाहिए। आदर्श प्रकार का उपयोग एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है जो शोधकर्ता को वास्तविकता के एक विशेष पहलू को व्यवस्थित रूप से विश्लेषण करने में मदद करता है, जिससे व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों को कम किया जा सके। हालांकि, स्रोतों में सीधे यह नहीं बताया गया है कि आदर्श प्रकार विशेष रूप से 'मूल्य-मुक्त' समाजशास्त्र का 'उदाहरण' कैसे प्रदान करते हैं, लेकिन वेबर के संदर्भ में इन दोनों अवधारणाओं का उल्लेख किया गया है। आदर्श प्रकार एक विश्लेषणात्मक ढांचा प्रदान करते हैं जो शोधकर्ता को वास्तविक घटनाओं की तुलना में एक तटस्थ और वस्तुनिष्ठ तरीके से सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने में मदद करता है, जिससे व्यक्तिगत मूल्यों का प्रभाव कम हो सकता है।

4. सामाजिक विश्लेषण की आगमनात्मक और निगमनात्मक विधियों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए। (इकाई 2, इकाई 5)

सामाजिक विश्लेषण में दो मुख्य विधियाँ हैं: आगमनात्मक (Inductive) और निगमनात्मक (Deductive) विधियाँ। इन विधियों के बीच मुख्य अंतर इस प्रकार है:

  • आगमनात्मक विधि (Inductive Method):

    • यह विधि विशिष्ट अनुभवों या अनुभवजन्य साक्ष्यों (specific observations or empirical evidence) से शुरू होती है।
    • इसका उद्देश्य सामान्यीकरण करना (generalize) और अमूर्त विचारों या सिद्धांतों को उत्पन्न करना (generate abstract ideas or theories) है।
    • यह निचले स्तर के डेटा या टिप्पणियों से शुरू होकर एक व्यापक सिद्धांत या निष्कर्ष तक पहुंचती है
    • ऐतिहासिक शोध में, विकासवादी शोधकर्ता अक्सर आगमनात्मक पद्धति का उपयोग करते थे, जो सामाजिक विकास के मार्ग की खोज के लिए अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने और उससे सामान्यीकरण प्राप्त करने पर केंद्रित था।
    • (स्रोतों में एक संभावित असंगति है: एक स्थान पर 'तर्कशास्त्रीय (आगमनात्मक) दृष्टिकोण' का वर्णन करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि यह सैद्धांतिक प्रस्ताव से ठोस सबूतों की ओर बढ़ता है, जो आमतौर पर निगमनात्मक दृष्टिकोण का गुण है। हालांकि, अन्य स्पष्ट विवरण आगमनात्मक विधि को अनुभवजन्य डेटा से सामान्यीकरण उत्पन्न करने के रूप में परिभाषित करते हैं, जो इसकी पारंपरिक समझ के अनुरूप है।)
  • निगमनात्मक विधि (Deductive Method):

    • यह विधि सामान्य सिद्धांतों या स्थापित ज्ञान (general theories or established knowledge) से शुरू होती है।
    • इसका उद्देश्य इन सिद्धांतों या ज्ञान का उपयोग करके विशिष्ट तथ्यों या घटनाओं को समझना या उनकी व्याख्या करना (understand or explain specific facts or phenomena) है।
    • यह एक व्यापक सिद्धांत से शुरू होकर विशिष्ट टिप्पणियों या सबूतों की ओर बढ़ती है, सिद्धांतों का परीक्षण करती है।
    • सामाजिक मानवशास्त्र में इस विधि का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक विश्लेषण में निगमनात्मक पद्धति का उपयोग किया, जहाँ उन्होंने ज्ञान के उपयोग से प्राप्त तथ्यों को समझने का काम किया।

संक्षेप में, आगमनात्मक विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर बढ़ती है, जबकि निगमनात्मक विधि सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ती है

5. मैक्स वेबर की तुलनात्मक विधि पर एक टिप्पणी लिखिए। (इकाई 6)

मैक्स वेबर ने समाजशास्त्रीय विश्लेषण में तुलनात्मक विधि (comparative method) का महत्वपूर्ण उपयोग किया। वेबर का मानना था कि उनके शोध का आधार घटनाओं के कारणों की उत्पत्ति और उनके मूल्यांकन पर निर्भर करता है। उन्होंने नृजातीय अध्ययनों में सामाजिक घटनाओं के विश्लेषण को समझने के लिए तुलनात्मक विधि का इस्तेमाल किया, विशेष रूप से यूरोपीय संदर्भ में।

वेबर ने अपने समाजशास्त्रीय विश्लेषण को केवल कुछ समाजों के विश्लेषण तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे कई समाजों में होने वाली घटनाओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए विस्तारित किया। इस प्रकार, वेबर की तुलनात्मक विधि का उद्देश्य विभिन्न सामाजिक संदर्भों में समानताओं और भिन्नताओं का विश्लेषण करना था ताकि सामाजिक घटनाओं के अंतर्निहित कारणों और प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझा जा सके। उनका कार्य दिखाता है कि तुलनात्मक विधि सामाजिक घटनाओं की जटिलता को उजागर करने और सैद्धांतिक समझ को विकसित करने में महत्वपूर्ण है।

6. नारीवादी अनुभववाद के दृष्टिकोण को विस्तृत कीजिए। (इकाई 8)

नारीवादी अनुभववाद (Feminist empiricism) 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में उभरा, जो पारंपरिक अनुसंधान में मौजूद पूर्वाग्रहों (biases in traditional research) को संबोधित करने के लिए एक नारीवादी दृष्टिकोण के रूप में विकसित हुआ। यह महिला मुक्ति आंदोलन से प्रेरणा लेकर विकसित हुआ और नारीवादी सिद्धांतकारों ने तर्क दिया कि सामाजिक विज्ञान में शोध के लिए नए ज्ञान और तरीकों की आवश्यकता है ताकि समाजशास्त्र की आलोचनाओं का जवाब दिया जा सके।

नारीवादी अनुभववाद का केंद्रीय विचार यह है कि पारंपरिक अनुभववाद स्वयं लिंग-अंधा नहीं रहा है, और इसमें पुरुष-केंद्रित (androcentric) पूर्वाग्रह रहे हैं। नारीवादी अनुभववादी मानते हैं कि अनुसंधान में महिलाओं के अनुभवों और दृष्टिकोणों को शामिल करना (incorporating women's experiences and perspectives) अधिक वस्तुनिष्ठ और विश्वसनीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। यह दृष्टिकोण अनुसंधान में लिंग के प्रभाव को समझने और उसे दूर करने पर जोर देता है, जिससे अधिक समग्र और सटीक सामाजिक वास्तविकता की समझ प्राप्त की जा सके।

इस दृष्टिकोण का लक्ष्य उन पूर्वाग्रहों को पहचानना और दूर करना है जो पारंपरिक अनुसंधान में महिलाओं को अध्ययन के विषय के रूप में या शोधकर्ताओं के रूप में अनदेखा करते हैं। इस प्रकार, नारीवादी अनुभववाद अनुसंधान को अधिक वस्तुनिष्ठ और अनुभवजन्य बनाने का प्रयास करता है, जिससे यह महिलाओं के जीवन और अनुभवों को अधिक सटीक रूप से प्रतिबिंबित कर सके।

7. मात्रात्मक शोध के विभिन्न प्रकारों की चर्चा कीजिए। (इकाई 9)

मात्रात्मक शोध विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जिनका उपयोग विशिष्ट अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जाता है। दिए गए स्रोतों के अनुसार, मात्रात्मक शोध के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • वर्णनात्मक अनुसंधान डिजाइन (Descriptive Research Design):

    • इस प्रकार का अनुसंधान घटनाओं, व्यक्तियों, विषयों और वस्तुओं के स्थान, गुणों और व्याख्या पर केंद्रित होता है।
    • शोधकर्ता किसी घटना की प्रकृति और उसकी विशेषताओं का वर्णन करता है।
  • अवलोकन (Observational Research):

    • इसमें शोधकर्ता नियमित तरीके से घटनाओं या व्यवहारों का अवलोकन और रिकॉर्डिंग करता है।
    • यह दो प्रकार का हो सकता है:
      • अप्रत्यक्ष अवलोकन (Non-participant observation): शोधकर्ता समूह के कामकाज में भाग नहीं लेता है।
      • प्रतिभागी अवलोकन (Participant observation): शोधकर्ता समूह के कामकाज में सक्रिय रूप से भाग लेता है।
  • केस अध्ययन अनुसंधान (Case Study Research):

    • यह गैर-प्रयोगात्मक अनुसंधान का एक प्रकार है जिसमें किसी एक मामले या समूह का गहन अध्ययन किया जाता है। (स्रोत में इसे मात्रात्मक विधि के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।)
  • सर्वेक्षण अनुसंधान (Survey Research):

    • इसमें व्यक्तियों के एक नमूने (sample) से डेटा एकत्र किया जाता है, अक्सर प्रश्नावलियों (questionnaires) या साक्षात्कारों (interviews) का उपयोग करके।
    • इसका उपयोग जनसंख्या की विशेषताओं, विचारों, व्यवहारों और प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
  • मात्रात्मक सह-संबंधपरक अनुसंधान (Quantitative Co-relational research):

    • इस प्रकार का अनुसंधान दो या दो से अधिक चरों (variables) के बीच सांख्यिकीय संबंध का माप और गणना करता है।
    • यह कारण-प्रभाव संबंध स्थापित नहीं करता है, बल्कि केवल चरों के बीच संबंध की प्रकृति और शक्ति का पता लगाता है।
  • प्रयोगात्मक-तुलनात्मक अनुसंधान (Causal-Comparative research):

    • इस शोध में दो या दो से अधिक समूहों की तुलना आश्रित चर पर की जाती है, जहां स्वतंत्र चर को हेरफेर नहीं किया जाता है। यह अध्ययन कारण-प्रभाव संबंधों की जांच करता है जो पहले से मौजूद हैं।
  • प्रयोगात्मक शोधकार्य (Experimental Research):

    • इसे सर्वाधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण माना जाता है जिसमें शोधकर्ता एक या अधिक स्वतंत्र चरों में हेरफेर (manipulate) करता है और आश्रित चर पर उनके प्रभाव का अवलोकन करता है।
    • इसका उद्देश्य कारण-प्रभाव संबंधों को स्थापित करना है।

8. एथनोमेथोडोलॉजी क्या है? इसके अनुप्रयोगों की चर्चा कीजिए। (इकाई 7)

एथनोमेथोडोलॉजी (Ethnomethodology) का अर्थ है लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों का अध्ययन। इसका संबंध समाज के सदस्यों द्वारा नियोजित तरीकों और प्रक्रियाओं को जांचने और अपने दैनिक जीवन को लिखने-जोखने और अर्थ देने से होता है। इसे व्यवहारिक कार्यवाई और व्यवहारिक तर्क (practical actions and practical reasoning) के सामान्य और रोजमर्रा के तरीकों का अध्ययन माना जाता है। यह जांच करता है कि व्यक्ति अपनी सामाजिक दुनिया को कैसे समझते हैं और बातचीत करते हैं

एथनोमेथोडोलॉजी के अनुप्रयोग (Applications of Ethnomethodology):

  • दस्तावेजी विधि (Documentary Method):

    • गारफिंकल द्वारा विकसित इस विधि में, शोधकर्ता सामाजिक अंतःक्रियाओं में अंतर्निहित पैटर्न (underlying patterns) की तलाश करते हैं।
    • यह विधि यह मानती है कि घटनाओं में एक अंतर्निहित पैटर्न या संरचना होती है जो हमें सामाजिक व्यवस्था को समझने में मदद करती है। शोधकर्ता घटनाओं के विशिष्ट उदाहरणों से सामान्य पैटर्न और संरचनाओं को उजागर करने का प्रयास करते हैं।
  • उल्लंघन प्रयोग (Breach Experiments):

    • ये प्रयोग सामाजिक मानदंडों को जानबूझकर बाधित करने (intentionally disrupting social norms) के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
    • इन प्रयोगों का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था के अंतर्निहित नियमों और अपेक्षाओं को उजागर करना है, जो सामान्य परिस्थितियों में अदृश्य रहते हैं।
    • 'एग्नेस का मामला' (Case of Agnes) इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जहाँ सामाजिक मानदंडों को तोड़कर सामाजिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया गया।

एथनोमेथोडोलॉजी इस बात पर जोर देती है कि सामाजिक व्यवस्था को लोगों द्वारा लगातार बनाया और बनाए रखा जाता है। यह सामान्य ज्ञान और प्रक्रियाओं का अध्ययन करके सामाजिक जीवन की संरचना को समझने में मदद करती है जो लोग रोजमर्रा की गतिविधियों में उपयोग करते हैं।


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