December 2022
1. गुणात्मक शोध का अर्थ और विशेषताएँ क्या हैं? (इकाई 10)
गुणात्मक शोध सामाजिक विज्ञान में एक प्राथमिक श्रेणी है, जो मूल रूप से क्षेत्र में अवलोकन और बातचीत पर निर्भर करती है जहाँ शोधकार्य किया जा रहा है। इसमें शोध के विषयों के साथ उनकी मातृभाषा में बातचीत शामिल होती है। फ्रांज बोअन और इवांस-प्रिचर्ड जैसे मानवविज्ञानियों ने इस शोध परंपरा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, और समाजशास्त्र में इसे रॉबर्ट ई. पार्क के मार्गदर्शन में प्रमुखता मिली। गुणात्मक शोध अपने दृष्टिकोण में प्रकृतिवादी, प्रतिभागीवादी और नृवंशविज्ञानी होता है।
गुणात्मक शोध के लक्ष्य और उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि लोग कुछ इस तरह से व्यवहार क्यों करते हैं। इसका उद्देश्य घटना के पीछे के कारणों का पता लगाना है, बजाय इसके कि केवल शोध विषय के दायरे पर विचार किया जाए। गुणात्मक शोध के उद्देश्य सूक्ष्म-वृहद स्पेक्ट्रम और संरचनात्मक तथा प्रक्रियात्मक दोनों मुद्दों जैसे कई स्तरों पर फैले होते हैं। समाजशास्त्र में, यह विश्लेषण के कई स्तरों पर पारिवारिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए अनुकूल है, पारंपरिक सूक्ष्म-वृहद विभाजन और अस्थिर वस्तुनिष्ठ-व्यक्तिपरक ध्रुवीकरण से बचते हुए।
गुणात्मक शोध की बौद्धिक आधारभूत भावनाएँ परिघटनाविज्ञान, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, वर्स्टन (समझना), प्रकृतिवाद और नृवंशविज्ञान कहलाती हैं। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद प्रतीकों, प्रक्रियाओं और बातचीत से परे दिखाई पड़ता है ताकि सामाजिक जीवन के अंतर्निहित पैटर्न या रूपों को निर्धारित किया जा सके।
गुणात्मक शोध की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह अध्ययन किए जा रहे लोगों के दृष्टिकोण से होने वाली घटनाओं, क्रियाओं और मूल्यों को देखता है। इसके लिए शोधकर्ता को शोध क्षेत्र में लंबा समय बिताना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। यह शोधकर्ता को अनुभवों और क्षणों को चित्रित करने में मदद करता है जो अन्यथा संभव नहीं हो सकता।
गुणात्मक शोध की ऐतिहासिक यात्रा को आठ क्षणों में देखा जा सकता है। पारंपरिक चरण (1900-1950) के दौरान, क्षेत्रीय अनुभव सटीक और वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट लिखने का प्रयास कर रहे थे। इस समय के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को गहरे सम्मान के साथ देखा गया, जो कम ज्ञात संस्कृतियों की अज्ञात कहानियों को दुनिया में लाने के अभियानों पर गए थे। यह अवधि शास्त्रीय नृवंशविज्ञान परंपरा के मानदंडों पर भारी पड़ती है। उत्तर-आधुनिक काल अवधि (1990-1995) में, पिछले चरणों में मौजूद संकटों को हल करने का प्रयास किया गया। नृवंशविज्ञान को बनाने के लिए नए तरीकों को आजमाया गया और 'अन्य' समूहों के लिए ज्ञान पद्धति प्रदान की गई। इस चरण में सहभागी, क्रिया और प्रभाव का अनुसंधान में बोलबाला रहा। बड़े सिद्धांतों की प्राचीन धारणाओं को अधिक सूक्ष्म, स्थानीय और तात्कालिक सिद्धांतों के पक्ष में कम किया गया।
2. सामाजिक सिद्धांत और सामाजिक शोध के बीच संबंध स्पष्ट कीजिए। (इकाई 2)
सिद्धांत और अनुसंधान के बीच एक गहरा संबंध होता है। समाजशास्त्रीय सिद्धांत शब्द का उपयोग कई संबंधित लेकिन अलग-अलग गतिविधियों के परिणामों को संदर्भित करने के लिए किया गया है। इन गतिविधियों के अनुभवजन्य सामाजिक अनुसंधान पर काफी अलग-अलग प्रभाव होते हैं।
सिद्धांत के मूलतत्त्व यह दर्शाते हैं कि एक सिद्धांत की अवधारणाओं को दूसरे सिद्धांत से जुड़ा होना आवश्यक है, और अवधारणाओं के बीच यह संबंध सैद्धांतिक बयान और कथन होता है। ये कथन उस तरीके को निर्दिष्ट करते हैं जिसमें अवधारणाओं द्वारा प्रदर्शित एवं प्रतिनिधित्व की गई घटनाओं का परस्पर संबंध होता है, और साथ ही, वे इस बात की व्याख्या प्रदान करते हैं कि घटनाओं को एक-दूसरे से कैसे और क्यों जोड़ा जाना चाहिए। जब इन सैद्धांतिक बयानों को एक साथ समूहित किया जाता है तो वे सैद्धांतिक स्वरूपों का गठन करते हैं। इसका तात्पर्य है कि सिद्धांत शोध के लिए एक ढांचा प्रदान करता है जिसे शोध फिर परीक्षण करता है या खोजता है।
मर्टन ने छह विभिन्न प्रकार की कार्यविधियों को बताया है जो एक साथ मिलकर एक सिद्धांत को प्रतिपादित करती हैं, और ये अनुभवजन्य सामाजिक अनुसंधान को प्रभावित करती हैं:
- प्रविधि
- सामान्य समाजशास्त्रीय अभिविन्यास
- समाजशास्त्रीय अवधारणाओं का विश्लेषण
- तथ्यात्मक समाजशास्त्रीय व्याख्याएँ
- समाजशास्त्र में आनुभविक सामान्यीकरण
- समाजशास्त्रीय सिद्धांत
यह स्पष्ट करता है कि सिद्धांत शोध को दिशा और संरचना प्रदान करता है, और शोध के परिणाम फिर सिद्धांत को परिष्कृत और विस्तृत करते हैं।
3. मैक्स वेबर के सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता पर विचार स्पष्ट कीजिए। (इकाई 3)
मैक्स वेबर के विचार में, वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि शोधकर्ता को निष्पक्ष और आलोचना के लिए खुला होना चाहिए। साक्ष्य, सबूतों और तथ्यों को अलग-अलग सत्यापित किए जाने की आवश्यकता होती है, और निष्कर्ष व्यक्ति की व्यक्तिगत मान्यताओं, मूल्य निर्णयों या पूर्वधारणाओं से मुक्त होकर तथ्यों के आधार पर निकाले जाने चाहिए।
वेबर ने 'मूल्य-मुक्त समाजशास्त्र' की अवधारणा पर जोर दिया, जिसका अर्थ था कि सामाजिक विश्लेषण की प्रक्रिया शोधकर्ताओं के व्यक्तिगत मूल्यों और आर्थिक हितों से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
हालांकि, नारीवादियों ने वेबर के मूल्य-मुक्त सामाजिक विज्ञान के संस्करण को त्रुटिपूर्ण बताया। उन्होंने तर्क दिया कि शोधकर्ता की सत्ता मीमांसा (ओंनकॉलोजी) ने अनुसंधान के विषयों का विकल्प निर्धारित किया है। चूंकि अनुसंधान कार्यों में लैंगिकता लगभग अदृश्य थी, इसका मतलब यह था कि सामाजिक विज्ञानों का ज्ञानवादी विज्ञान अपने आप में एक गलत मूल्य पर आधारित था। सामाजिक कार्रवाई की व्याख्या भी शोधकर्ता और अनुसंधान विषय द्वारा साझा वास्तविकता के इस त्रुटिपूर्ण संस्करण पर आधारित थी।
4. समाजशास्त्र में दुर्खीम द्वारा रचित तुलनात्मक विधि की उपयोगिता पर एक टिप्पणी लिखिए। (इकाई 6)
एमिल दुर्खीम ने समाजशास्त्र में ऐतिहासिक पद्धति का उपयोग किया। उन्होंने फ्रांस के इतिहासकार, फोरस्टल डी कुलेंजेस की रचनाओं से अपनी पुस्तकों 'द डिवीजन ऑफ लेबर ऑफ सोसाइटी' (1893) और 'द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रिलीजियस लाइफ' (1912) में काम किया। उन्होंने फ्रांस में शिक्षा के इतिहास पर भी लिखा था। दुर्खीम ने 'ल'अन्नी सोशलोजिक' (L'Année Sociologique) नामक एक पत्रिका भी स्थापित की, जहाँ उन्होंने इतिहास पर पुस्तकों की समीक्षा करने की नीति बनाई। यह दर्शाता है कि दुर्खीम ने अपने समाजशास्त्रीय अध्ययनों के लिए ऐतिहासिक स्रोतों का उपयोग किया।
हालांकि, प्रदान किए गए स्रोतों में दुर्खीम के तुलनात्मक विधि के विशिष्ट उपयोग का विस्तार से वर्णन नहीं किया गया है। स्रोत में तुलनात्मक विधि पर संदर्भों की सूची में दुर्खीम की पुस्तक 'द रूल्स ऑफ सोशियोलॉजिकल मेथड' (1958) का उल्लेख है, जो इंगित करता है कि उन्होंने इस पद्धति पर काम किया था। सामान्य तौर पर, तुलनात्मक पद्धति का उद्देश्य मानव सामाजिक घटनाओं के सैद्धांतिक अध्ययन के आधार के रूप में सामाजिक जीवन की किस्मों का पता लगाना है, और विभिन्न समाजों में, वर्तमान या अतीत में, समानांतर समानता वाली सामाजिक विशेषताओं को देखना है।
5. स्टैंडपॉइंट (मनोदृष्टि) सिद्धांत की विभिन्न विशेषताओं पर चर्चा कीजिए। (इकाई 8)
दृष्टिकोणवादी (स्टैंडपॉइंट) सिद्धांतकार तर्क देते हैं कि शोधकर्ता की सामाजिक अवस्थिति को स्वीकार किए बिना, सार्वभौमिक रूप में प्रस्तुत की जाने वाली जानकारी गलत होती है। उनके अनुसार, शोधकर्ता की अवस्थिति महत्वपूर्ण होती है। सामाजिक विज्ञानों की मूल्य तटस्थता पक्षपाती और वस्तुनिष्ठ होती थी। विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाने वाला मानक ढांचा आवश्यक रूप से शोधकार्य और शोधकर्ता की तत्कालीन सामाजिक अवस्थिति को ध्यान में रखना चाहिए।
स्टैंडपॉइंट सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- सामाजिक अवस्थिति का महत्व: यह इस बात पर जोर देता है कि ज्ञान हमेशा सामाजिक रूप से अवस्थित होता है, और शोधकर्ता की सामाजिक अवस्थिति (जैसे लिंग, वर्ग, जाति) उनके दृष्टिकोण और उनके द्वारा उत्पादित ज्ञान को प्रभावित करती है।
- सार्वभौमिकता की चुनौती: दृष्टिकोणवादी सिद्धांतकार तर्क देते हैं कि जो ज्ञान सार्वभौमिक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है वह हमेशा सत्ता की अवस्थिति से उत्पन्न होता है। उनका मानना है कि मानक ढाचे सार्वभौमिक नहीं होते हैं और अनिवार्य रूप से भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
- अधो-प्रायः (Under-privileged) दृष्टिकोण का विशेषाधिकार: यह तर्क दिया जाता है कि हाशिए पर पड़े या उत्पीड़ित समूहों के पास सामाजिक वास्तविकता की अधिक पूर्ण और आलोचनात्मक समझ हो सकती है क्योंकि वे प्रमुख दृष्टिकोण और अपनी खुद की वास्तविकता दोनों को समझने में सक्षम होते हैं।
- मूल्य तटस्थता की आलोचना: वे सामाजिक विज्ञानों में पारंपरिक मूल्य तटस्थता की धारणा को पक्षपाती मानते हैं, यह तर्क देते हुए कि शोध कभी भी पूर्वाग्रह मुक्त नहीं होता है।
यह सिद्धांत नारीवादी अनिवार्यता की आलोचना के रूप में उभरा, जिसमें तर्क दिया गया कि केवल महिलाओं को मौजूदा अनुसंधान में जोड़ने से मर्दाना दृष्टिकोण कमजोर नहीं होता।
6. अनुभवजन्य शोध में प्रयुक्त विभिन्न साधनों (instruments) पर चर्चा कीजिए। (इकाई 9, 10, 11)
अनुभवजन्य शोध (Empirical Research) में डेटा संग्रह के लिए विभिन्न साधनों और पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। मुख्य रूप से, मात्रात्मक शोध में डेटा संग्रह के लिए सर्वेक्षण अनुसंधान एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जिसमें प्रश्नावली और साक्षात्कार जैसे उपकरण शामिल हैं।
1. प्रश्नावली (Questionnaire):
- यह प्रश्नों का एक समूह है जो उत्तरदाताओं को भरने के लिए दिया जाता है।
- प्रश्न खुले अंत वाले (ओपन एंडेड) हो सकते हैं, जहाँ उत्तरदाताओं को अपने स्वयं के उत्तर भरने होते हैं।
- प्रश्न बंद अंत वाले (क्लोज्ड एंडेड) भी हो सकते हैं, जहाँ उत्तरदाता सूचीबद्ध उत्तरों में से अपना पसंदीदा उत्तर चुनते हैं। बंद अंत वाले प्रश्न मात्रात्मक शोध में अत्यधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि वे अधिक सटीक और सुसंगत उत्तर प्राप्त करने में मदद करते हैं जिनका आसानी से विश्लेषण किया जा सकता है।
- प्रश्नावली तैयार करते समय कुछ दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है: विषय-वस्तु स्पष्ट होनी चाहिए, द्विमुखी (डबल-बैरल) सवालों से बचना चाहिए, उत्तरदाताओं में पर्याप्त योग्यता और क्षमता होनी चाहिए, प्रश्न पर्याप्त रूप से प्रासंगिक होने चाहिए, और प्रश्नावली पक्षपात से ग्रस्त नहीं होनी चाहिए।
2. साक्षात्कार (Interviews):
- गुणात्मक साक्षात्कार गुणात्मक डेटा एकत्र करने की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली विधि है। इसमें आम तौर पर गहराई से और लचीले ढंग से बनाए गए साक्षात्कार शामिल होते हैं।
- गुणात्मक साक्षात्कार में आमने-सामने संवाद के साथ-साथ महत्वपूर्ण समूह चर्चाएँ भी शामिल हो सकती हैं।
- ये टेलीफोन, वीडियो या इंटरनेट पर भी आयोजित किए जा सकते हैं। यह किसी संरचित प्रश्नावली का उपयोग नहीं करता है।
- केस स्टडी अनुसंधान में भी प्रत्यक्ष अवलोकन और व्यवस्थित साक्षात्कारों से सबूत इकट्ठा करने का उल्लेख है।
3. अवलोकन (Observation):
- केस स्टडी अनुसंधान में प्रत्यक्ष अवलोकन से सबूत इकट्ठा किए जाते हैं।
- गुणात्मक अनुसंधान में 'अवलोकन करना और भाग लेना' डेटा उत्पन्न करने का एक विशेष तरीका है।
4. अभिलेखीय विश्लेषण (Archival Analysis):
- यह किसी स्थान, संस्था या लोगों के समूह के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले ऐतिहासिक दस्तावेजों या अभिलेखों का संग्रह होता है।
- यह एक प्राथमिक ऐतिहासिक रिकॉर्ड का सबसे महत्वपूर्ण रूप होता है।
- इसमें संग्रह के दस्तावेजों के साथ आदान-प्रदान (एक्सचेंजों) के परिणामस्वरूप उत्पन्न संवादों को शामिल किया जाता है।
- एक ऐतिहासिक अभिलेख या संग्रह में पत्रिकाएँ, पत्र, भाषण, प्रकाशित लेख, भौतिक वस्तुएँ, समाचार पत्रों की कतरनें, रेडियो या टेलीविजन प्रसारण आदि शामिल हो सकते हैं। यह शोधकर्ताओं को महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है。
7. सामाजिक शोध में दृश्य विधियों के महत्व को स्पष्ट कीजिए। (इकाई 10)
दृश्य विधियों (Visual Methods) का उपयोग सामाजिक अनुसंधान में एक प्रमुख तरीका बन गया है, विशेष रूप से गुणात्मक अनुसंधान में अपनाई गई रणनीतियों के दायरे में।
दृश्य विधियों और दस्तावेजों का महत्व इस प्रकार है:
- वे गुणात्मक डेटा के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- मौजूदा दस्तावेजों के माध्यम से ब्राउज़ करने में न केवल अभिलेखागार का दौरा करना शामिल है, बल्कि इंटरनेट और वेब पृष्ठों सहित दस्तावेजों के अन्य स्रोतों का भी उपयोग किया जाता है।
- यह विधि सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकियों और तकनीकों तक पहुंच के साथ लोकप्रिय हो गई है।
दृश्य विधियों के माध्यम से प्राप्त डेटा में विभिन्न प्रकार की सामग्री शामिल हो सकती है, जैसे:
- संसद के अधिनियम और सम्मेलन संबंधी कागजात
- बीमा पॉलिसी, बैंक विवरण, खाते और बैलेंस शीट
- कंपनी की रिपोर्ट, बिल, बैठक के कार्यवृत्त
- किताबें, मैनुअल और अन्य प्रकाशन
- डायरी, पत्र, खरीदारी की सूची
- कंप्यूटर फाइलें और दस्तावेज़
- अखबार और पत्रिकाएँ
- मोटे नोट और स्क्रिबल्स
- मेनू, विज्ञापन
- वेबसाइट और इंटरनेट तथा वर्ल्ड वाइड वेब पर उपलब्ध अन्य सामग्री
ये सभी स्रोत शोधकर्ता को सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं की गहरी और समृद्ध समझ प्राप्त करने में मदद करते हैं, जिससे शोध को अधिक प्रभावशाली और व्यापक बनाया जा सकता है।
8. दस्तावेजी विधि (Documentary Method) की विशेषताओं पर चर्चा कीजिए। (इकाई 10)
दस्तावेजी विधि (Documentary Method), जिसे आलेखीय विधि भी कहा जाता है, घटनात्मक दृष्टिकोण और नृवंशविज्ञान संबंधी दृष्टिकोण के बीच स्पष्ट समानताएँ दर्शाती है। गार्फिंकल (1967) ने इसे 'व्याख्या की सुव्यवस्थित पद्धति' के रूप में वर्णित किया है।
इस विधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- दस्तावेजी पद्धति के माध्यम से, एक व्यवसायी विषयों की प्रतिक्रिया में एक पैटर्न खोजने का प्रयास करता है।
- इस पैटर्न के माध्यम से, वह बड़ी स्थिति के एक अंतर्निहित पैटर्न को खोजने की कोशिश करता है।
- गार्फिंकल ने नृजातीय पद्धति के दृष्टिकोण में इस पद्धति को विकसित करने के लिए कार्ल मैनहेम के लेखन पर ध्यान दिया है।
- शोधकर्ता का उद्देश्य क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं, व्यवहारों के विश्लेषण के माध्यम से इन सभी कार्यों के बीच इस 'अंतर्निहित पैटर्न' को विकसित करना होता है।
संक्षेप में, दस्तावेजी विधि का उपयोग सामाजिक जीवन के अंतर्निहित और अदृश्य संरचनाओं और अर्थों को उजागर करने के लिए किया जाता है, जो केवल सतह पर दिखाई देने वाली घटनाओं से परे होते हैं।